
महामारी में कई पेट पैरंट्स अपनी जान गवां चुके हैं। इस वजह से कई पेट्स अनाथ हो गए हैं या उनकी केयर करने वाला अब कोई नहीं रहा। इसको लेकर तमाम लोग सोशल मीडिया या एनजीओ को कॉल करके मदद मांग रहे हैं। पेश है ये रिपोर्ट:
जिस घर में उन्होंने बचपन बिताया, जिस घर के आंगन में पैरंट्स के साथ वो खूब मस्ती करते थे, आज वही पेट्स दरवाजे पर टकटकी लगाए अपने पैरंट्स का इंतजार करते रहते हैं। उनको उम्मीद है शायद वो लौट कर आएंगे और उन्हें खाना-पीना देंगे और इसके बाद उनके साथ खूब खेलेंगे। लेकिन सच्चाई ये ही है कि जिन पेट पैरंटस ने कोरोना के दौरान अपनी जान गवाई है, उनके पेट्स को भी अब दूसरे घर की तलाश है।
कोरोना ने ली पैरंट्स की जान
किसी घर में भरपूर प्यार मिलने से पेट्स भी अपने पैरंटस के आदी हो चुके हाेते हैं। लेकिन जब उनकी देखभाल करने वाला ही इस दुनिया में नहीं रहा तो पेट्स के लिए भी बड़ी समस्या पैदा हो गई है। इस बारे में एनिमल्स के लिए काम करने वाली देवयानी स्वरूप बताती हैं, ‘हमारे पास इन दिनों हर रोज 10 से 15 कॉल आती हैं, जहां घर में कोरोना की वजह से अगर पेट की देखभाल करने वाले व्यक्ति का देहांत हो गया है तो उनके करीबी कह रहे हैं कि वह अब उसकी केयर नहीं कर सकते हैं। वहीं ऐसे भी केस हैं जहां पति-पत्नी दोनों का देहांत हो चुका है और पेट्स अनाथ हो चुके हैं।’
दूसरे घर के लिए मांग रहे मदद
जहां एक तरफ अपने पैरंट्स खाेने की वजह से पेट्स दुखी हैं, वहीं उनके लिए अब लोग नया घर ढूंढने की गुहार लगा रहे हैं। बकौल देवयानी स्वरूप, ‘जितनी भी लोग हमसे संपर्क कर रहे हैं, उनकी ये डिमांड होती है कि ये डॉग अब अकेला हो गया है या अब इसको संभालने वाला व्यक्ति नहीं रहा है तो ये हमारी नहीं सुनता है, ऐसे में हम चाहते हैं कि इसके लिए नया घर ढूंढा जाए। हम सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों के जरिए पेट्स की कहानी लोगों को बता रहे हैं ताकि लोग उनकी परेशानी को समझकर उनको अडॉप्ट करने के लिए आगे आएं।’ वहीं पेटा इंडिया वेटरनरी सर्विस मैनेजर रश्मि गोखले बताती हैं, ‘गोद देने वाले व्यक्ति और लेने वाले पैरंट्स को कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए। पेट्स को गाेद लेने को लेकर पशु क्रूरता निवारण (केस विषयक पशुओं की देखभाल और भरण पोषण) नियम 2016 के नियम 9 के अंतर्गत ये कहा गया है कि डॉग या कैट को गोद लेने से पहले संबंधित संस्था के पास गोद लेने का वाले का रिकॉर्ड जिसमें उसका नाम, पता, आईडी प्रूफ और अड्रेस प्रूफ होना अनिवार्य है। इस नियम में यह भी उल्लेखित है की पशु को अपनाने वाला व्यक्ति इस जानवर को कभी नहीं बेचेगा और न ही कभी लावारिस छोड़ेगा। इसके साथ ही गोद लेने से पहले कैट या डॉग की नसबंदी भी करानी होगी। इन सभी नियमों का उल्लंघन दंडनीय अपराध है।’
देसी ब्रीड के साथ नाइंसाफी
इस हालात में भी लोग पेट्स को अडॉप्ट करने से पहले उनकी ब्रीड देख रहे हैं। देवयानी स्वरूप बताती हैं, ‘हमारे पास जो विदेश ब्रीड के डॉग या कैट को तो तुरंत एक घर मिल जाता है। लेकिन जब बात आती है देसी ब्रीड के पेट्स की तो लोग उनको लेने से कतराते हैं। इसलिए हमें देसी ब्रीड्स की स्टोरी के साथ-साथ उनके घर में होने के फायदे भी लोगों काे बताने पड़ते हैं, ताकि देसी ब्रीड को लेकर भी लोग अपनी रुचि दिखाएं।’ वहीं फोर डॉग शेक इंडिया की सदस्य और मेंटर प्रगति जैन बताती हैं, ‘ये एक टैबू है कि अगर कोई देसी ब्रीड का डॉग है तो ये तो गली वाले देसी डॉग हैं, जबकि देसी डॉग्स की विदेश में बहुत बड़ी डिमांड है और लोग इन्हें लेने के लिए बहुत पैसा खर्च करते हैं। हम देसी ब्रीड के बारे में कई जगह पोस्ट डालते हैं तो उनमें से कोई एक व्यक्ति ही हमें मेसेज करता है।’
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